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शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं (Shantakaram bhujagshayanam in Hindi)

शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं 
(Shantakaram bhujagshayanam in Hindi)

Shantakaram bhujagshayanam in Hindi-शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं - वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम् | Shantakaram bhujagshayanam, SANSKRITSHLOK
Shantakaram bhujagshayanam in Hindi

शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम् |
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यान्गम्यं
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् ||

यं ब्रह्मा वरुणेन्द्ररुद्रमरुतः स्तुवन्ति दिव्यैः स्तवै -
वेदैः साङ्ग्पद्क्रमोपनिषदैर्गायन्ति यं सामगाः |
ध्यानावस्थिततद्रतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो -
यस्यान्तं न विदुः सुरासुरगणा देवाय तस्मै नमः ||

अर्थात् -
जिनकी आकृति अतिशय शान्त है , जो शेषनाग की शय्या पर शयन किये हुए हैं,जिनकी नाभि में कमल है, जो देवताओं के भी ईश्वर हैं, जो संपूर्ण जगत के आधार हैं,जो आकाश के सदृश सर्वत्र व्याप्त हैं , नील मेघ के सामान जिनका वर्ण है, अतिशय सुन्दर जिनके सम्पूर्ण अंग हैं, जो योगियों द्वारा ध्यान करके प्राप्त किये जाते हैं, जो सम्पूर्ण लोकों के स्वामी हैं, जो जन्म-मरण रूप भय के नाश करने वाले हैं, ऐसे लक्ष्मीपति, कमलनेत्र भगवान् श्रीविष्णु को मैं प्रणाम करता हूँ |


ब्रह्मा, वरुण, इंद्र, रूद्र और मरुद्गण दिव्य स्त्रोतों द्वारा जिनकी स्तुति करते हैं, सामवेद के गानेवाले अंग, पद, क्रम और उपनिषदों सहित वेदों द्वारा जिनका गान करते हैं, योगीजन ध्यान में स्थित तद्गत हुए मन से जिनका दर्शन करते हैं, देवता और असुरगण जिनके अंत को नहीं जानते, उन परमपुरुष नारायण देव को मेरा नमस्कार है |


वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम् |
देवकीपरमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ||

अर्थात् -
कंस और चाणूर का वध करने वाले, देवकी के आनन्दवर्धन, वसुदेवनन्दन, जगद्गुरु श्रीकृष्ण की मैं वंदना करता हूँ ||


© कवि आशीष उपाध्याय "एकाकी"
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश 
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