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प्यार क्या है ? (Pyar kya hai in hindi - what is love?)

प्यार क्या है ? 
(Pyar kya hai in hindi - what is love?)

What is love in hindi ?
        
About 
यह लेख कवि आशीष उपाध्याय "एकाकी" के द्वारा लिखित है | इस लेख में प्रेम से जुड़े विभिन्न पहलुओं का विस्तृत रूप से वर्णन किया गया है | इस लेख को पढ़ने के बाद आप प्रेम के निर्मल भाव को महसूस कर पाएँगे | 

मेरे प्रिय साथियों !

"प्रेम ही जीवन है |"
 इस कथन को आपने कई बार फिल्मों,कविताओं, कहानियों या फिर किसी हमउम्र या  किसी बड़े बुजुर्ग से जरूर सुना होगा | कई बार आपने भी समाज में इस कथन का प्रयोग अपनी प्रतिष्ठा या फिर सम्मान बढ़ानें के लिए जरूर किया होगा | 

               लेकिन क्या आपको ज्ञात है, कि प्रेम क्या है ? और यदि यह जीवन है | तो कैसे ? क्या आपने कभी इस कथन पर मंथन किया है ?

यदि मैं आपसे कहूँ, कि प्रेम मृत्यु भी है, तो ये अनुचित नहीं होगा | परन्तु अब सवाल उठता है, कैसे ?

प्रायः हमनें  कई लेखों में, शायरियों में और कविताओ में प्रेम को प्रेमिका की जुल्फों से उठकर पैरों से लिपटकर रोते देखा है | ये बहुत दुर्भाग्य की बात है, कि कुछ कवि, लेखक एवं शायर बनावटी प्रेम लिखते हैं | जिसे सुनकर, पढ़कर और देखकर लोगों की राक्षसी कामना जागृत हो जाती है | और सम्पूर्ण युवा जगत कामना को प्रेम समझकर अंधों की तरह उस कामुखता की ओर दौड़ने लगता है | जैसे कोई स्वान रोटी और मांस के टुकड़े को देखकर दौड़ता है |

                            बात यहाँ तक नहीं रूकती | प्रेम के इस काल्पनिक विकास में कुछ  प्रेरक वक्ता (Motivational speaker) भी अपनी किस्मत आजमाने से पीछे नहीं हटते | यदि फिल्म जगत के बारे में कुछ कहूँ, तो मेरी लेखनी रूक जाती है और मन उद्विग्न हो जाता है |


मूल प्रश्न  - प्रेम क्या है  ? 

उत्तर.... 
"प्रेम जीवन को अलौकिक सौंदर्य और पवित्रता प्रदान करता है | जिससे मनुष्य को ईश्वरीय शक्ति की प्राप्ति होती है | शरीर से स्थूल इन्द्रियों की भोग-वासना जब ज्ञान से विराम को प्राप्त हो जाती है , तब प्रेम के सूर्य का उदय होता है |"


सत्व, रज और तम से परिपूर्ण इस त्रिगुणात्मक जगत में प्रेम का स्थान रजोगुण है | यह रजोगुणी प्रेम - भावना जब संकुचित रहती है, तो  रजोगुण अपनी पराकाष्ठा पर होती है | परन्तु जैसे - जैसे हृदय की शुद्ध  भावनाएं जागृत होती जाती हैं वैसे - वैसे रजोगुण में सत्वगुण का मिश्रण होने लगता है और रजोगुण  न्यूनता को प्राप्त होने लगती है | इस प्रकार कालचक्र के फलस्वरूप सत्वगुण का अंश बढ़ने लगता है और वही रजोगुणी प्रेम भावना सत्वगुण में समाहित हो जाती है | इस दशा में मनुष्य मोक्ष का उत्तराधिकारी बन जाता है | कामनाएं और वासनाएँ पूर्णतः नष्ट हो जाती हैं |  इसे ही सात्विक प्रेम कहा जाता है |

"यही प्रेम है |"

परन्तु, जब कभी यही रजोगुणमयी प्रेम तमोगुण की तरफ झुकता है, तो कामनाएँ और वासनाएँ विकराल रूप धारण कर लेती हैं | " फलस्वरूप रजोगुण, तमोगुण में विराम पा जाता है | ऐसा होनें से मनुष्य की मति भ्रष्ट हो जाती है | कामनाएं इन्द्रियों को जागृत कर देती हैं | इन्द्रियां, वासनाओं को और वासनाएं पाप को बढ़ावा देती हैं | फलस्वरूप मनुष्य का समूल पतन हो जाता है | यदि ऐसा हो जाए  तो मनुष्य मृतक के समान है | 


श्रीकृष्ण भी भगवतगीता में कहते हैं,कि " तमोगुणी भावनाएं कामना, भोग-विलास और वासनाओं की प्रतिक हैं |"

निष्कर्ष:- निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है, कि प्रेम यदि सात्विक ( सच्चा ) है, तो आत्मीय सुख की अनुभूति कराता है और अंततः मनुष्य को मोक्ष के अनुकूल बनाता है | परन्तु प्रेम यदि तामसी (कामनाओं और वासनाओं का जंजाल में जकड़ा हुआ  ) है, तो मनुष्य अधोगति को प्राप्त होता है और पाप का भागी बनाता है | 


साधारण शब्दों में कहा जा सकता है, कि प्रेम वह आत्मीय भावना है, जो एक प्रेमी और प्रेमिका, माता-पुत्र , पिता-पुत्री , भाई-बहन  को या फिर किसी भी वर्ग समूह के मनुष्यों में मेल कराता है | यदि प्रेम सत्यार्थ है, तो  मनुष्य जीवन और मृत्यु की बाधाओं को तोड़कर मोक्ष का अनुगामी बन जाता है | परन्तु यदि यही प्रेम- भावना भोग एवं कामना के जाल में बँधा हुआ है, तो मनुष्य को पापाचारी बनाता है | 

                                                © कवि आशीष उपाध्याय "एकाकी"
गोरखपुर , उत्तर  प्रदेश 


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