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काँटो मेँ राह बनाते हैं - रामधारी सिंह " दिनकर " (Kanto me Raah Banate Hai - Ramdhari Singh "Dinkar")

काँटो मेँ राह बनाते हैं - रामधारी सिंह " दिनकर " 
(Kanto me Raah Banate Hai - Ramdhari Singh "Dinkar")

kanto me raah banate hai-रामधारी सिंह " दिनकर " - kanto me raah banate hai hindi vyakhya - काँटों में  राह बनाते हैं - सच है विपत्ति जब आती है hindi
kanto me raah banate hai poem summary

About this poem 
 
"काँटों में  राह बनाते हैं |" कविता हिन्दी के प्रख्यात कवि श्री "रामधारी सिंह - दिनकर " जी के द्वारा रचित महाकाव्य "रश्मिरथी" का एक छोटा- सा अंशमात्र है | 

( अर्थ नीचे पढ़ें )

सच है विपत्ति जब आती है ,
कायर को ही दहलाती है,
शूरमा नहीं विचलित होते ,
एक क्षण नहीं धीरज खोते ,

विघ्नों को गले लगाते हैं ,  
काँटो मेँ राह बनाते हैं |

मुख से न कभी उफ़ कहते हैं,
संकट का चरण न गहते है ,
जो आ पड़ता सब सहते हैं ,
उद्योग निरत -नित रहते हैं,

शूलों का मूल नशाने को,
बढ़ खुद विपत्ति पर छाने को |

है कौन विघ्न ऐसा जग में ,
टिक सके आदमी के मग में ?
ख़म ठोंक ठेलता है जब नर ,
पर्वत के जाते पाँव उखड |

मानव जब जोर लगाता है,
पत्थर पानी बन जाता है |

गुण बड़े एक से एक प्रखर ,
हैं छिपे मानवों भीतर ,
मेहँदी में जैसे लाली हो ,
वर्तिका बीच उजियाली हो |

बत्ती जो नहीं जलाता है,
 रोशनी नहीं वो पाता है |

पिसा जाता जब इक्षु -दंड,
झरती रस की धारा अखंड ,
मेहँदी जब सहती है प्रहार,
बनती ललनाओं का सिंगार ,

जब फूल पिरोये जाते हैं ,
हम उनको गले लगाते हैं |

जब विघ्न सामने आते हैं ,
सोते से हमें जगाते हैं ,
मन को मरोड़ते हैं पल-पल,
तन को झंझोरते हैं पल-पल |

 सत्पथ की ओर लगाकर लगाकर ही ,
जाते हैं हमें जागकर ही |

वाटिका और वन एक नहीं,
आराम और रण एक नहीं,
वर्षा, अंधड़ , आतप अखंड,
नरता के हैं साधन प्रचंड ,

वन में प्रसून तो खिलते हैं,
बागो में शाल न मिलते हैं |

कंकड़ियाँ जिनकी सेज सुधर ,
छाया देता केवल अम्बर ,
विपदाएँ दूध पिलातीं हैं,
लोरी आँधियाँ सुनाती हैं |

जो लांक्षा-गृह में जलते हैं ,
वे ही शूरमा निकलते हैं |

"रश्मिरथी"
     - रामधारी सिंह " दिनकर "
           
     अर्थ इस प्रकार से है - 
                    
महाकवि दिनकर जी कहते हैं, कि दुख सुख सबके जीवन में आता जाता रहता है | परंतु उनमें से ऐसे लोग जो हमेशा अपने जीवन में मुसीबतों का सामना करने से घबराते हैं, जब कोई भी दुख, मुसीबत या यूं कहें तो विपत्ति आती है, तो सबसे पहले उन्ही डरपोक लोगों को डराती है अर्थात परेशान करती है | इसके विपरित जो व्यक्ति हमेशा कुछ भी सहने तथा अपने जीवन की कठिनाईयों से लड़ने के लिए सजग रहते हैं, वे कभी भी अपने जीवन पथ से भटकते नहीं और अनवरत ऊर्जावान होकर धैर्य के साथ चलते रहते हैं | 

इसमें कवि कहते हैं, कि वह व्यक्ति जो धीर, वीर और गंभीर है | वह कभी भी अपने जीवन में आने वाली मुसीबतों के सामने झुकता नहीं है | बल्कि उन सारी मुसीबतों का पराक्रम के साथ सामना करता है और अंततः उनको समूल नष्ट कर देता है |

इस संपूर्ण संसार में ऐसी कोई विपत्ति या दुख नहीं है, जो परिश्रमी के व्यक्ति के सामने एक क्षण भी टिक पाए | अर्थात् दुखों की कोई सत्ता नहीं है | जब कभी कोई मुसीबत पराक्रमी और परिश्रमी व्यक्ति के मार्ग में आ भी जाता है तो उसकी अदम्य साहस के आगे घुटने टेक देता है | मानव के अंदर अपने पराक्रम और अदम्य साहस के बल पर पत्थर को पानी बनाने तक की भी क्षमता होती है |

इन पंक्तियों में दिनकर जी एक नारी के साहस बलिदान और धैर्य की ओर सबका ध्यान आकृष्ट करते हुए कहते हैं, कि जब कभी कोई मां लगातार पीड़ा सहती है और अपने कर्म और धैर्य के साथ सत्पथ पर लगी रहती है तो उसके द्वारा किए गए सारे कर्म और सही गई यातनाएं उसके पुत्रों को बलवती बनाती हैं, जिस प्रकार से मां कुंती के साथ हुआ था | उसके पुत्र हर तरह की मुसीबतों से लड़ने हेतु सर्वदा तैयार रहते हैं |

इन पंक्तियों में महाकवि मुसीबतों को जीवन का वरदान मानते हैं और कहते हैं, कि जब कभी भी जीवन में दुख, तकलीफ़ और मुसीबतें आती हैं, तो हमें अपने जीवन में अपने कर्मों के प्रति सजग कर देती हैं और हमारे अंदर असीम ऊर्जा भर देती हैं | कवि कहते हैं कि उनका आना ही इसलिए होता है, कि हम अपने जीवन अच्छे बुरे का फर्क महसूस कर सकें और सतपथ की ओर लग सकें |

कवि वाटिका और वन का उदाहरण देकर कहते हैं कि जीवन में सुख और दुख दोनों अलग - अलग हैं | जीवन में आराम भी है और संघर्ष भी है, हर व्यक्ति दोनों में से किसी का भी चयन करने के लिए पूर्णतः स्वतंत्र है |

कवि अंतिम पंक्तियों में कहते हैं, कि उद्योगी अर्थात् परिश्रमी व्यक्ति के लिए तो सारी मुसीबतें उसकी साथी हैं जो सदैव उसको उसके कर्मों का आभास कराती रहती हैं | कवि पांडवों की व्याख्या देते हुए कहते हैं कि जो व्यक्ति जितने प्रेम और साहस से सभी दुखों को सहता है, अंततः वही व्यक्ति निखर कर संसार का सूरज बनता है |

व्याख्या - कवि आशीष उपाध्याय
  गोरखपुर, उत्तर प्रदेश  

नोट - 
यह कविता "काँटों में राह बनाते हैं "  खंडकाव्य "रश्मिरथी" से लिया गया  है | जिसके रचनाकार रामधारी सिंह "दिनकर" जी हैं |
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