भगवद्गीता माहात्म्य
Bhagwatgeeta Mahatmya
About Bhagwat Geeta
भगवतगीता भारत के श्रेष्ठम ऐतिहासिक ग्रन्थ "महाभारत" का एक बहुत ही अभिन्न अंग है | जब कभी भी महाभारत की बात की जाती है, तो भगवतगीता का नाम हर व्यक्ति के होठों पर चमकता हुआ प्रतीत होता है | इसलिए इसका भाव इतना सरल हो जाता है,कि हर व्यक्ति चाहे उसने कभी भगवतगीता को पढ़ा हो या न पढ़ा हो, सर्वदा अपने जीवन में इसके मूल को जरूर ग्रहण करता है, और जीवन डगर पर अपनी मंजिल पाने को बहुत ही तनमयता के साथ निकल पड़ता है |
मूल प्रश्न :-
क्या आपको मालूम है , कि भगवतगीता हर मनुष्य के जीवन में कितना महत्व रखता है ?
क्या आपको मालूम है, कि आपको भगवतगीता क्यों पढ़ना और सुनना चाहिए ?
उत्तर :-
इन सभी प्रश्नों के उत्तर भगवतगीता में ही हैं | इस लेख में आपको यह भलीभांति ज्ञात हो जाएगा, कि भगवतगीता का क्या महत्व है |
👉👉👉 भगवद्गीता भगवान श्रीहरी कृष्ण के मुख से निकली रहस्यमयी वाणी है | जिसे परमपिता परमात्मा ने संपूर्ण जीवों के कल्याण के लिए उपहार स्वरुप प्रदान किया है | भगवद्गीता की महिमा को भलीभांति जान पाना समुद्र की गहराई को नापने के सदृढ़ है , परन्तु फिर भी यदि हम उस ज्ञानरुपी महासागर से थोड़ा-सा ज्ञान ले सके तो हमारा जन्म और मरण दोनों सफल हो जायेगा |
भगवद्गीता की महत्ता को अपने में समाहित करते कुछ श्लोक एवं उनके अर्थ ......
1. गीतशास्त्रमिदं पुण्यं यः पठेत्प्रयतः पुमान् |
विष्णोः पदमवाप्नोति भयशोकादिवर्जितः ||
अर्थात् :- जो मनुष्य शुद्धचित्त होकर प्रेमपूर्वक इस पवित्र गीताशास्त्र का पाठ करता है या जो पढता है, वह भय और शोक आदि से रहित होकर विष्णुधाम को प्राप्त कर लेता है |
अर्थात् :- जो मनुष्य शुद्धचित्त होकर प्रेमपूर्वक इस पवित्र गीताशास्त्र का पाठ करता है या जो पढता है, वह भय और शोक आदि से रहित होकर विष्णुधाम को प्राप्त कर लेता है |
2. गीताध्ययनशीलस्य प्राणायामपरस्य च |
नैव सन्ति हि पापानि पूर्वजन्म कृतानि च ||
अर्थात् :-जो मनुष्य सदा भगवतगीता पढ़ने वाला है तथा प्राणायाम में तत्पर रहने वाला हैं , उसके इस जन्म और पूर्व जन्म में किये हुए समस्त पाप निःसंदेह नष्ट हो जाते हैं |
अर्थात् :-जो मनुष्य सदा भगवतगीता पढ़ने वाला है तथा प्राणायाम में तत्पर रहने वाला हैं , उसके इस जन्म और पूर्व जन्म में किये हुए समस्त पाप निःसंदेह नष्ट हो जाते हैं |
3. मलनिर्मोचनं पुंसां जलस्नानं दिने-दिने |
सकृद्रीताम्भसि स्नानं संसारमलनाशनम् ||
अर्थात् :- जल में नितदिन किया हुआ स्नान मनुष्यों के केवल शारीरिक मल का नाश करनें वाला है , परन्तु गीतारूपी जल में एकबार भी किया हुआ स्नान संसार मल को नाश करने वाला है |
अर्थात् :- जल में नितदिन किया हुआ स्नान मनुष्यों के केवल शारीरिक मल का नाश करनें वाला है , परन्तु गीतारूपी जल में एकबार भी किया हुआ स्नान संसार मल को नाश करने वाला है |
4. गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यैः शास्त्रविस्तरैः |
या स्वयं पद्मनाभस्य मुख्पद्मद्विनिः सृता ||
अर्थात् :- जो गीता साक्षात् भगवान् श्रीविष्णु के मुखकमल से प्रकट हुई है ,उस गीता का भलीभांति गान करना चाहिए | यदि हम ऐसा करते हैं तो किसी और शास्त्र को जानने से क्या प्रयोजन ?
5. भारतामृतसर्वस्वं विष्नोर्वक्त्राद्विनिः सृतं |
गीतागङ्गोदकं पीत्वा पूर्वजन्म न विद्यते ||
अर्थात् :- जो गीता महाभारत का अमृतोपम सार है तथा जो भगवान श्रीकृष्ण के मुख से प्रकट हुआ है | उस गीतरूप जल पी लेने पर पुनः इस संसार में जन्म नहीं लेना पड़ता |
6. सर्वोपनिषदो गावो दोग्धा गोपालनन्दनः |
पार्थो वत्सः सुधीर्भोक्ता दुग्धं गीतामृतं महत् ||
अर्थात् :- सम्पूर्ण उपनिषदें गौ के समान हैं | गोपालनन्दन श्रीकृष्ण दुहने वाले हैं , अर्जुन बछड़ा है तथा महान गीतामृत ही उस गौ का दुग्ध है और शुद्धचित्त वाला श्रेष्ठ मनुष्य ही इसका भोक्ता है |
या स्वयं पद्मनाभस्य मुख्पद्मद्विनिः सृता ||
अर्थात् :- जो गीता साक्षात् भगवान् श्रीविष्णु के मुखकमल से प्रकट हुई है ,उस गीता का भलीभांति गान करना चाहिए | यदि हम ऐसा करते हैं तो किसी और शास्त्र को जानने से क्या प्रयोजन ?
5. भारतामृतसर्वस्वं विष्नोर्वक्त्राद्विनिः सृतं |
गीतागङ्गोदकं पीत्वा पूर्वजन्म न विद्यते ||
अर्थात् :- जो गीता महाभारत का अमृतोपम सार है तथा जो भगवान श्रीकृष्ण के मुख से प्रकट हुआ है | उस गीतरूप जल पी लेने पर पुनः इस संसार में जन्म नहीं लेना पड़ता |
6. सर्वोपनिषदो गावो दोग्धा गोपालनन्दनः |
पार्थो वत्सः सुधीर्भोक्ता दुग्धं गीतामृतं महत् ||
अर्थात् :- सम्पूर्ण उपनिषदें गौ के समान हैं | गोपालनन्दन श्रीकृष्ण दुहने वाले हैं , अर्जुन बछड़ा है तथा महान गीतामृत ही उस गौ का दुग्ध है और शुद्धचित्त वाला श्रेष्ठ मनुष्य ही इसका भोक्ता है |
सन्देश :- भगवतगीता हर मनुष्य के लिये ज्ञान का साक्षात्कार कराने वाला बहुत ही सुलभ साधन है | अतः हमसे जितना हो सके उतना गीता के ज्ञानरूपी अमृत को पीने का प्रयास करना चाहिए |
परमपिता परमेश्वर की परम अनुकम्पा ही है , कि उन्होनें समस्त सृष्टि के कल्याण हेतु गीताज्ञान हमेँ दिया|
अतः हमें इस ज्ञान के महासागर में गोता लगाने से कभी भी चूकना नहीं चाहिए |
© कवि आशीष उपाध्याय "एकाकी"
3 Comments
Bahut bahut hi umda likha h aapne ..
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आपको !
ReplyDeleteक्या बात👏👏
ReplyDeletePlease do not enter any spam link in the comment box.
Emoji