अमन्त्रमक्षरं नास्ति, नास्ति मूलमनौषधम्
(Amantaraksharam nasti muloshadham)
Amantaraksharam nasti muloshadham |
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इस श्लोक के माध्यम से इस बात की ओर संकेत किया गया है, कि हर व्यक्ति में कुछ न कुछ गुण जरूर होता है, इसलिए हमें सबका सम्मान करना चाहिए |
अमन्त्रमक्षरं नास्ति, नास्ति मूलमनौषधम् ।अयोग्यः पुरुषः नास्ति योजकस्तत्र दुर्लभः ।।
अर्थ
संपूर्ण संसार में ऐसा कोई अक्षर नहीं है, जो मन्त्र न बन सके | ऐसी कोई जड़ी-बूटी नहीं है, जिसमें औषधि बनने का गुण न हो; और ऐसा कोई मनुष्य नहीं है, जिसमें कुछ करने को योग्यता न हो परन्तु इसका समुचित रूप से संयोजक दुर्लभ है |
साधारण शब्दों में -
प्रकृति में व्याप्त हर एक कण कण में अपनी योग्यता है | यदि किसी भी पदार्थ को टटोला जाए तो उसमें हमें अवश्य ही गुण मिलेगा |
संदेश -
हर एक तत्व की अपनी महत्ता है, इसलिए हमें सबका सम्मान करना चाहिए |
© कवि आशीष उपाध्याय "एकाकी"
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश
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