यत्रापि कुत्रापि गता भवेयु- हंसा मही मण्डलमण्डनाय
(yatrapi kutrapi yatha bhaveyu in Hindi)
yatrapi kutrapi yatha bhaveyu in hindi |
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इस श्लोक में गुणी व्यक्ति के गुणों की विवेचना की गई है |
यत्रापि कुत्रापि गता भवेयु-हंसा मही मण्डलमण्डनाय।हानिस्तु तेषां हि सरोवराणांयेषां मरालैः सः विप्रयोगः।।
अर्थात्
संपूर्ण पृथ्वी पर हंस ( गुणवान व्यक्ति ) जहां कहीं भी चले जाएंगे वहां के स्थान को अपने सुकर्मों से सुशोभित कर देंगे | उन्हें इस बात के लिए कोई दुख नहीं होगा कि वे एक स्थान को छोड़कर दूसरे स्थान जा रहे हैं | लेकिन दुख तो उन तालाबों या सरोवरों को होगा, जिन्हें हंसों ( गुणवान व्यक्तियों ) ने छोड़ दिया अर्थात् त्याग दिया |
साधारण शब्दों में -
गुणवान अर्थात् सदाचारी व्यक्ति जहां भी रहते हैं, अपने शोभनीय गुणों से सबके दिलों पर राज करते हैं | यदि वे किसी कारण वश एक जगह से दूसरे जगह चले जाते हैं, तो उन्हें इस बात को कोई दुख नहीं होता कि उन्होंने एक स्थान को छोड़ दिया, अपितु उस स्थान के निवासियों को बहुत दुख होता है, कि उन्होंने एक महान व्यक्ति को खो दिया |
क्योंकि वह गुणवान व्यक्ति तो जहां भी रहेगा, वहां पर सभी लोग उसके ही गुणों के गीत गाते रहेंगे |
संदेश -
हमें गुणवान होना चाहिए |
(भामिनीविलासः)
© कवि आशीष उपाध्याय "एकाकी"
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश
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