सेवितव्यो महावृक्षः फलच्छायासमन्वितः
(Sevitavyo mahavriksh falchhayasamanvitah)
Sevitavyo mahavrikshah falachhayasamanvita |
About
इस श्लोक में निस्वार्थ भाव से कर्म करने की ओर किया गया है |
सेवितव्यो महावृक्षः फलच्छायासमन्वितः ।यदि दैवात् फलं नास्ति छाया केन निवार्यते ।।
अर्थात्
ऐसा महान वृक्ष जो फल और छाया दोनों देनेवाले हैं उनकी सेवा अर्थात् ऐसे वृक्ष को लगाना चाहिए | यदि किसी कारणवश हमारे भाग्य में फल आता तो छाया कौन लेकर जा सकता है ? अर्थात् वृक्ष की छाया सदैव बनी रहेगी जो हमेशा हमें शीतलता प्रदान करती रहेगी |
संदेश
हमें निस्वार्थ भाव से सत्कर्म करना चाहिए | यदि हम ऐसा करते हैं तो हमें असीम आनंद की प्राप्ति होगी और अंततः उस कार्य का फल भी मिलेगा |
© कवि आशीष उपाध्याय "एकाकी"
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश
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