मृगा मृगैः सङ्गमनुव्रजन्ति, गावश्च गोभिः तुरगास्तुरगैः
(Mriga mrigai sang anuvrajanti in hindi)
Mriga mrigai sang anuvrajanti in Hindi |
About
इस श्लोक के माध्यम से आचरण के बारे में बताया गया है और इस बात की ओर भी संकेत किया गया है, कि हमें किस प्रकार की संगति करनी चाहिए |
मृगा मृगैः सङ्गमनुव्रजन्ति,
गावश्च गोभिः तुरगास्तुरगैः ।
मूर्खाश्च मूखरौः सुधियः सुधीभिः,
समान—शील—व्यसनेषु सख्यम् ||
अर्थ
हिरन हिरनों के साथ, गाय गायों के साथ, घोड़े घोड़ों के साथ, मूर्ख मूर्खों के साथ, बुद्धिमान व्यक्ति बुद्धिमान व्यक्तियों के साथ या उनके पीछे पीछे चलते हैं अर्थात् उनका अनुसरण करते हैं | इस प्रकार कहा जा सकता है, कि समान शील अर्थात् समान आचरण वाले अपने समान आचरण वालों के साथ मित्रता करते हैं और जो बुरे आचरण वाले हैं उनकी मित्रता उनके समान बुरी आदतों वाले व्यक्ति से होगी | विपरित आचरण वालों में कभी मित्रता नहीं होती |
संदेश
हमें सदैव सज्जनों की संगति करनी चाहिए |
© कवि आशीष उपाध्याय "एकाकी"
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश
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