या कुंदेंदु तुषार हार धवला या शुभ्रवस्त्रावृता
(ya kundendu tushara hara dhawla vandana)
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प्रस्तुत श्लोक में ज्ञान की देवी माँ सरस्वती की वंदना गई है और उनकी महिमा का गुणगान करते हुए
ज्ञान की आकांक्षा की गई है |
या कुंदेंदु तुषार हार धवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वीणा वरदंडमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवै: सदा वन्दिता।
सा मां पातु सरस्वती भगवती नि:शेषजाड्यापहा।1।
शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्वयापिनीं।
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम् ।।
हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्।
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवती बुद्धिप्रदां शारदाम् ।।
जो विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह धवल वर्ण की हैं और जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, जिनके हाथ में वीणा-दण्ड शोभायमान है, जिन्होंने श्वेत कमलों पर आसन ग्रहण किया है तथा ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित हैं, वही संपूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर कर देने वाली मां सरस्वती हमारी रक्षा करें |
शुक्लवर्ण वाली, संपूर्ण चराचर जगत् में व्याप्त, आदिशक्ति, परब्रह्म के विषय में किए गए विचार एवं चिंतन के सार रूप परम उत्कर्ष को धारण करने वाली, सभी भयों से भयदान देने वाली, अज्ञान के अंधेरे को मिटाने वाली, हाथों में वीणा, पुस्तक और स्फटिक की माला धारण करने वाली और पद्मासन पर विराजमान बुद्धि प्रदान करने वाली, सर्वोच्च ऐश्वर्य से अलंकृत, भगवती शारदा (सरस्वती देवी) की मैं वंदना करता हूं!
© आशीष उपाध्याय ' एकाकी '
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश
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