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विचित्रे खलु संसारे नास्ति किञ्चिन्निरर्थकम् (Bharasya vahnekah,vichitre khalu sansare)

विचित्रे खलु संसारे नास्ति किञ्चिन्निरर्थकम्
 (Bharasya vahnekah,vichitre khalu sansare)

bharasya vahnekah,vichitre khalu sansare, विचित्रे खलु संसारे नास्ति किञ्चिन्निरर्थकम् । अश्वश्चेद् धावने वीरः भारस्य वहने खरः ।। sanskrit shlok
Bharasya vahnekah,vichitre khalu sansare

About
इस श्लोक के द्वारा संसार की विचित्र स्थिति को बताते हुए सबका सम्मान करने की ओर संकेत किया गया है |

विचित्रे खलु संसारे नास्ति किञ्चिन्निरर्थकम् ।
अश्वश्चेद् धावने वीरः भारस्य वहने खरः ।।

अर्थात्
ईश्वर के द्वारा बनाए इस विचित्र संसार में कोई भी निरर्थक नहीं है | यदि घोड़ा तेज दौड़ने में कुशल अर्थात् वीर है तो गधा भी भार ढोने में कुशल अर्थात् वीर है |

संदेश 
हमें हर व्यक्ति का सम्मान करना चाहिए | 

© कवि आशीष उपाध्याय "एकाकी"
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश 

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