गुणा: गुणग्येषु गुणा भवन्ति , ते निर्गुर्णं प्राप्य भवन्ति दोषा :
(guna gunagyeshu guna bhavanti in hindi)
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इस श्लोक में गुणों और गुणवान व्यक्ति की महत्ता को विस्तार से समझाया गया है |
गुणा: गुणग्येषु गुणा भवन्ति ,ते निर्गुर्णं प्राप्य भवन्ति दोषा : ।आस्वाद्यतोया: प्रवहन्ति नद्य: ,समुद्रमासाद्य भवन्तयपेया : ।।
अर्थात्
जो गुण और अवगुण में भेद करने वाले हैं अर्थात् जो गुणों और अवगुणों को भली प्रकार से जानने वाले हैं, वास्तव में वे ही गुणों के वास्तविक मोल को बता पाते हैं | जिन व्यक्तियों में ये सामर्थ्य ही नहीं है, कि वे सही - गलत अर्थात गुण अवगुण को पहचान पाएं उनके लिए सब कुछ सामान्य होता है | इसलिए हमें उन व्यक्तियों से सानिध्य में रहना चाहिए जो आपके गुण और दोषों को पहचान कर आपका सटीक मार्गदर्शन कर सकें |
कभी भी ऐसे लोगों की संगति नहीं करनी चाहिए, जो आपके गुणों और दोषों में भेद न कर पाएं | क्योंकि यदि हम ऐसे लोगों की संगति में रहते हैं तो हमारे गुण भी धीरे धीरे समाप्त हो जाते हैं और दोषों में परिवर्तित हो जाते हैं |
ठीक उसी प्रकार यदि नदी का जल नदी में गिरता है तो मीठा ही होता है, लेकिन जब वही जल समुद्र में जाता है तो खारा हो जाता है अर्थात् गुणहीन हो जाता है |
संदेश
हमें सदा गुणी व्यक्तियों के सानिध्य में रहना चाहिए |
© कवि आशीष उपाध्याय "एकाकी"
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश
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