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क्रोधो हि शत्रुः प्रथमो नराणां,देहस्थितो देह विनाशनाय (krodho hi shatru prathamo naranam hindi)

क्रोधो हि शत्रुः प्रथमो नराणां,देहस्थितो देह विनाशनाय 
 (krodho hi shatru prathamo naranam hindi)

Krodho hi shatru prathamo naranam hindi

About
इस श्लोक में क्रोध से मनुष्य शरीर को होने वाली हानियों से अवगत कराया गया है |

क्रोधो हि शत्रुः प्रथमो नराणां,देहस्थितो देह विनाशनाय ।
यथा स्थितः काष्ठगतो हि वह्नि, स एव वह्नि दहते शरीरम् ।।

अर्थात्
मनुष्यों के विनाश का पहला शत्रु अर्थात् दुश्मन उनके शरीर में स्थित क्रोध ही है | जिस प्रकार लकड़ी में स्थित अग्नि (आग) लकड़ी को ही पहले जला देती है, ठीक उसी प्रकार क्रोध भी अपने आगमन पर शरीर को जला देता है अर्थात् मनुष्य के शरीर का नुकसान कर देता है |

संदेश 
हर व्यक्ति को क्रोध करने से बचना चाहिए, क्योंकि क्रोध करने से स्वयं का नुकसान होता है, न कि किसी अन्य व्यक्ति का |

© कवि आशीष उपाध्याय "एकाकी"
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश 

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