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उदिरितोर्थः पशुनापि गृह्यते (Udiretorthah pashunapi grihate in hindi)

उदिरितोर्थः पशुनापि गृह्यते 
(Udiretorthah Pashunapi Grihate in hindi)

Udiretorthah pashunapi Grihate in Hindi

About
इस श्लोक में ज्ञानी और बुद्धिमान व्यक्ति की विशेषता को बताया गया है |

उदिरितोर्थः पशुनापि गृह्यते,
हयाश्च नागाश्च वहन्ति बोधिताः |
अनुक्तंप्यूहति पण्डितो जनः,
परेंगित ज्ञान फला हि बुद्धयः ||

अर्थात्
पशुओं के द्वारा भी जो उनको उनके मालिक के द्वारा कहा जाता है वही किया जाता है या ग्रहण किया जाता है | जैसे घोड़े और हाथी को जो ले जाने का आदेश दिया जाता है, तो वे ले जाते हैं |
जो पंडित हैं ज्ञानी लोग हैं वे अपने ज्ञान से बिना कहे किसी की बातों का पता लगा लेते हैं और बुद्धिमान केवल संकेत मात्र से सारी बातों को जान लेते हैं |

साधारण शब्दों में -
यदि कोई पशु है, तो पशु को उसके मालिक के द्वारा जो प्रशिक्षण दिया गया है, उसके अनुरूप ही वह कार्य करता है अर्थात् मालिक के सभी बातों को ग्रहण करता है | जैसे घोड़े और हाथी को संकेत के माध्यम से एक जगह से दूसरे जगह जाने के लिए कहा जाए तो वे जाते हैं |
ठीक उसी प्रकार जो ज्ञानी लोग हैं वे बिना कहे सबको बातों को समझ लेते हैं और बुद्धिमान व्यक्ति केवल संकेत से ही सबके हृदय के मर्म को पहचान लेते हैं |

© कवि आशीष उपाध्याय "एकाकी"
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश 
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