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निमित्त मुद्दिश्च हि यः प्रकुप्यति (Nimit muddishch hi yah prakupyati Hindi)

निमित्त मुद्दिश्च हि यः प्रकुप्यति 
(Nimit muddishch hi yah prakupyati Hindi)

Nimitta Mudishcha hi yah prakupyati

About
इस श्लोक के द्वारा मनुष्य के मनोस्थिति को समझाया गया है |

निमित्त मुद्दिश्च हि यः प्रकुप्यति,
ध्रुवं स तस्यापगमे प्रसीदति |
अकारण द्वेषी मनस्तु यस्य वै,
उदारितोदर्थः पशुनापि गृह्यते || 

अर्थात्
जिस व्यक्ति के दुखी होने का कोई कारण है, अर्थात् जो किसी कारण वश दुखी है, तो जब वह कारण जिसके द्वारा वह मनुष्य दुखी है, दूर हो जाता है, तो वह मनुष्य अपने आप प्रसन्न हो जाता है |
लेकिन यदि कोई ऐसा व्यक्ति है, जिसके दुखी होने का कोई कारण ही नहीं है, फिर भी वह अनायास ( बिन मतलब का ) दुखी है, तो उसको प्रसन्न नहीं किया जा सकता |

साधारण शब्दों में -
यदि कोई इस बात से दुखी है, कि उसके परीक्षा में नंबर कम आए या फिर कोई इस बात से दुखी है, कि उसकी कोई बहुमूल्य वस्तु खो गई तो उसको उचित तर्क देकर समझाया जा सकता है | समझाने पर वह अपने आप प्रसन्न हो जाएगा | 
लेकिन यदि कोई ऐसा व्यक्ति है, जो बिन कारण मायूस है तो उसके दुखों का समाधान नहीं किया जा सकता |

संदेश
हमें सदैव समस्या के जड़ में जाकर उसको समझना चाहिए और उसका निवारण करना चाहिए और साथ ही साथ प्रसन्न भी रहना चाहिए |

© कवि आशीष उपाध्याय "एकाकी"
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश 
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