भगवदगीता - अध्याय 6, श्लोक 06
Bhagwadgeeta Adhyay 6, Shlok 06 in Hindi
![]() |
Bhagwadgeeta Adhyay 6, Shlok 05 in Hindi |
बन्धुरात्मात्मनस्तस्य येनात्मैवात्मना जितः ।
अनात्मनस्तु शत्रुत्वे वर्तेतात्मैव शत्रुवत् ॥
श्री भगवान ने कहा ...
जिस जीवात्मा द्वारा मन और इन्द्रियों सहित शरीर जीता हुआ है, उस जीवात्मा का तो वह आप ही मित्र है और जिसके द्वारा मन तथा इन्द्रियों सहित शरीर नहीं जीता गया है, उसके लिए वह आप ही शत्रु के सदृश शत्रुता में बर्तता है ।
- भगवदगीता
- अध्याय 6, श्लोक 06
0 Comments
Please do not enter any spam link in the comment box.
Emoji