आखिर क्यों ? भारतेन्दु हरिश्चंद क्रिसमस पर दुखी हुए ?
आज बड़ा दिन है क्रिस्तान लोगों का इससे बढ़कर कोई और दिन नहीं है | किंतु मुझको आज उल्टा और दुख है | इसका कारण मनुष्य स्वभाव सुलभ ईर्ष्या मात्र है | मैं कोई सिद्ध नहीं, कि राग द्वेष से विहीन हूं | जब मुझे अंगरेज रमणी लोग मेद सिंचित केशराशि कृत्रिम कुंतलजूट, मिथ्यारत्नभरण, विविध वर्ण से भूषित क्षीण कटिदेश कटे, निज - निज पतिगण के साथ प्रसन्न इधर से उधर फर - फर कल की पुतली की भांति फिरती हुईं दिखाई पड़ती हैं तब इस देश की सीधी - सादी स्त्रियों की हीन अवस्था मुझको स्मरण आती है और यही बात मेरे दुख का कारण होती है |
- नीलदेवी से (बाबू भारतेंदु हरिश्चंद्र)
प्रस्तुति - रोहन कुमार मिश्र "निष्पक्ष" (युवा कवि)
इतनी सेवा और प्यार के बदले पुत्र के द्वारा एक बार " माँ " कहकर बुलाना ही माँ को असीम आनंद और सुख देने वाला है । माँ अपने किए गए उपकार के बदले कभी भी कुछ भी नहीं लेती । इसलिए तो माँ, माँ है ।
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