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लुब्धस्य नश्यति यशः पिशुनस्य मैत्री नष्टक्रियस्य कुलमर्थपरस्य धर्मः - lubdhasya nashyati yashah

लुब्धस्य नश्यति यशः पिशुनस्य मैत्री 
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About
इस श्लोक के मध्य से मनुष्य की बुराइयों से अवगत कराते हुए सत्कर्म का रास्ता दिखाया गया है |

लुब्धस्य नश्यति यशः पिशुनस्य मैत्री 
नष्टक्रियस्य कुलमर्थपरस्य धर्मः |
विद्याफलं व्यसनिनः कृपणस्य सौख्यं
राज्यं प्रमतसचिवस्य नराधिपस्य ||

लालची व्यक्ति का यश, चुगलखोर की मित्रता, कर्म से हीन व्यक्ति का कुल,धन को अधिक महत्त्व देने वाले का धर्म, बुरी आदतों वाले का विद्या से मिलने वाला लाभ, कंजूस का सुख और प्रमाद करने वाले मन्त्री के राजा का राज्य नष्ट हो जाता है |

संदेश
हमें स्वयं एवं राष्ट्र की मर्यादा को ध्यान में रखते हुए अपने कर्म करने चाहिए | 


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