विहाय पौरुषं यो हि दैवमेवावलम्बते -
Vihay paurusham yo hi daivmevavlambate
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इस श्लोक के माध्यम से पुरुषार्थ की महत्ता को समझाया गया है |
विहाय पौरुषं यो हि दैवमेवावलम्बते |प्रासादसिंहवत् तस्य मूर्ध्नि तिष्ठति वायसाः ||
जो व्यक्ति पुरुषार्थ (कर्मों में निष्ठा) को छोड़कर भाग्य का सहारा लेते हैं अर्थात अपने सभी कार्यों को भाग्य के सहारे छोड़ देते हैं, वे महल के दरवाजे पर बने शेर की तरह होते हैं, जिनके सिर पर कौवे बैठते हैं |
संदेश
हमें कभी भी अपने भाग्य के भरोसे नहीं रहना चाहिए | क्योंकि हमारा कल्याण केवल हमारे द्वारा किए गए सात्विक कर्मों अर्थात पुरुषार्थ के द्वारा ही हो सकता है |
भगवान श्री कृष्ण भी भगवतगीता में इस बात का समर्थन करते हैं |
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