वृतं यत्नेन संरक्षेद् वित्तमेति च याति च
(vritam yatnen sanrakshet in hindi)
Vritam yatnen sanrakshet in hindi |
About
इस श्लोक के द्वारा चरित्र की महत्ता को विधिवत समझाया गया है |
वृतं यत्नेन संरक्षेद् वित्तमेति च याति च।अक्षीणो वित्ततः क्षीणो वृत्ततस्तु हतो हतः।।
अर्थात्
मनुष्य के जीवन में धन तो आता और जाता रहता है,परन्तु चरित्र के साथ ऐसा नहीं होता अर्थात् चरित्र बार - बार आने और जाने वाली कोई वस्तु नहीं है | धन के क्षीण हो जाने पर मनुष्य का केवल धन जाता है इसके अलावा उसे कोई अन्य हानि नहीं होती; पर यदि किसी कुकृत्य से उसका चरित्र नष्ट हो गया तो वह व्यक्ति पूरी तरह से नष्ट हो जाता है |
संदेश
हमें भली प्रकार से सभी ओर से अपने चरित्र की रक्षा करनी चाहिए, ऐसा करने से हमारे अंदर सात्विक भावना का विकास होगा, और यदि सभी लोग ऐसा करते हैं तो निश्चित ही सभ्य और सुंदर समाज का निर्माण होगा |
- मनुस्मृति से
© कवि आशीष उपाध्याय "एकाकी"
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश
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