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पीत्वा रसं तु कटुकं मधुरं समानं - pitwa rasam tu katukam madhuram

पीत्वा रसं तु कटुकं मधुरं समानं
 pitwa rasam tu katukam madhuram samanam

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About
इस श्लोक में संतों के आचरण एवं उनकी महानता को दर्शाया गया है |
पीत्वा रसं तु कटुकं मधुरं समानं
माधुर्यमेव जन्येन्मधुमक्षिकासौ |
संतस्तथैव सम सज्जनदुर्जनानां
श्रुत्वा वचः मधुरसुक्त रसं सृजन्ति ||

जिस प्रकार मधुमक्खी मीठे और कड़वे दोनों प्रकार के रस को पीकर मिठास ही उत्पन्न करती है, ठीक उसी प्रकार सन्त लोग भी सज्जन और दुर्जन दोनों प्रकार के लोगों की बातों को एक समान सुनकर सुंदर वचन का ही सृजन करते हैं अर्थात् सुंदर वचन बोलते हैं |

संदेश
संतों एवं मधुमक्खियों के इस विशेष गुण को हमें भी अपने जीवन में उतारकर सुंदर वचन एवम आचरण वाला होना चाहिए |
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