यदा विनियतं चित्तमात्मन्येवावतिष्ठते हिन्दी में
Yada Viniyatam Chittam Explain in Hindi
परन्तु ऐसा क्यों ? क्या कभी आपने इस बात पर कभी विचार किया है ? कभी इस बात पर मंथन किया है ? यदि हां तो फिर एक बार करिएगा और यदि कभी सोचा ही नहीं तो जरूर सोचिएगा |
निः स्पृहः सर्वकामेभ्यॊ
"सभी प्रकार की इच्छाओं से बिल्कुल ही रहित"
जो व्यक्ति एकदम शांत है या यूं कहें तो जिसे किसी भी बात का कोई फर्क नहीं पड़ता | कौन रो रहा है ? कौन हंस रहा है ? कौन उसे गाली दे रहा है ? कौन उसकी प्रशंसा कर रहा है ? इत्यादि.....इत्यादि......
सरल शब्दों में जो इच्छा रहित है |
लेकिन उपर्युक्त बात के साथ - साथ एक प्रश्न भी जागृत हो जाता है, कि ऐसी कौन ही स्थिति है या ऐसा कौन सा केंद्र है जहां पहुंचकर एक व्यक्ति भली प्रकार से अपने आप को सुरक्षित महसूस करता है ?
उसकी स्थिति ठीक उसी कमल के पत्ते की तरह हो जाती है, जिसपर लगातार पानी डाला जाए या वर्षा हो, फिर भी वह कमल का पत्ता अपने ऊपर पानी को रुकने नहीं देता | जब हम इसके तह में जाकर विचार करते हैं तो पाते हैं, कि कमल पत्र अपनी स्थिति में अचल है और उस पानी के प्रति उसकी कोई इच्छा नहीं है | पत्र को अपनी इस अवस्था से बहुत प्रेम भी है |
किसी भी मनुष्य के जीवन में यह अवस्था तब आती है, जब वह भली प्रकार से अपने आप में स्थित हो जाता है | स्वयं को ही केंद्र मान लेता है और अतर्मुखी हो जाता है | जब उसे पूर्णतः विश्वास हो जाता है, कि जिसको वह अपनी नग्न आंखो से देख रहा है वह वास्तविक नहीं, अपितु सपना है अर्थात् जिस भौतिकता के पीछे वह लगातार भाग रहा है वह बस उसकी आंखों का दोष मात्र है | जिस भोज्य पदार्थ को वह खा रहा है उससे केवल उसका पेट भर रहा है, न हो जिव्हा की चपलता शांत हो रही और न ही उसे हमेशा रहने वाला वास्तविक सुख ही मिल रहा है | लेकिन फिर भी वह अपनी शक्ति प्रदर्शन करने के लिए तरह - तरह के कार्यों में दिनभर - रातभर लगा हुआ है | जिस क्षणिक काम इच्छा के लिए वह ईश्वर प्रदत्त अपने बहुत सारे दिव्य समय को गवां रहा है, वह उसके लिए महत्वहीन है |
तब वह मनुष्य अपने - आप में अपनी दैवीय सुंदरता को निहारने लगता है | अपने - आप से बतियाने लगता है | सभी चीजों को बहुत ही गौर से देखने लगता है | हवाओं का आना - जाना उसे अपने विवेक से दिखने लगता है | उसकी हर सांस उससे बातें करती हैं | उसके सारे सद्गुण उसके मुख से, आंखों से या सरल शब्दों में कहें तो उसके रोम - रोम से प्रदर्शित होने लगते हैं | ये स्थिति ही उस व्यक्ति को महान बनाती है और ये सब इसलिए होता है, क्योंकि वह व्यक्ति मन से आत्मा अर्थात् अपने आप में स्थित है और सभी भौतिक सपनों से पूर्णतः निः स्पृह है |
विशेष - क्या आप भी उपरोक्त दिव्य गुणों वाले हैं ? यदि हां तो आप धन्य हैं और यदि नहीं तो आपको ये प्रयत्न अवश्य ही करना चाहिए, कि अपने आप को अपने आप अर्थात् आत्मा अर्थात् परमात्मा में नियत करें |
आपने इस लेख से क्या सीखा ? हमें अवश्य बताएं | हमें आपकी सुंदर प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा |
© कवि आशीष उपाध्याय "एकाकी"
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश
0 Comments
Please do not enter any spam link in the comment box.
Emoji