भगवदगीता अध्याय 1, श्लोक 45 - (अहो बत महत्पापं कर्तुं व्यवसिता वयम्)
Bhagwadgeeta Adhyay 1, Shlok in Hindi
Bhagwadgeeta Adhyay 1,Shlok 45 in Hindi |
अहो बत महत्पापं कर्तुं व्यवसिता वयम् ।
यद्राज्यसुखलोभेन हन्तुं स्वजनमुद्यताः ॥
अर्जुन, श्रीकृष्ण से कहते हैं कि........
हा ! शोक ! कितने आश्चर्य की बात है कि हम सभी लोग बुद्धिमान होकर भी महान पाप करने को तैयार हो गए हैं, जो राज्य और सुख के लोभ से अपने प्रियजनों को मारने के लिए आतुर हो गए हैं ।
- भगवतगीता
- अध्याय 1, श्लोक 45
0 Comments
Please do not enter any spam link in the comment box.
Emoji