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भगवदगीता अध्याय 2, श्लोक 8 - (न हि प्रपश्यामि ममापनुद्या- द्यच्छोकमुच्छोषणमिन्द्रियाणाम्‌)

भगवदगीता अध्याय 2, श्लोक 8 - (न हि प्रपश्यामि ममापनुद्या- द्यच्छोकमुच्छोषणमिन्द्रियाणाम्‌)
Bhagwadgeeta Adhyay 2, Shlok 8 in Hindi


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Bhagwadgeeta Adhyay 2, Shlok 8 in Hindi


न हि प्रपश्यामि ममापनुद्या-
द्यच्छोकमुच्छोषणमिन्द्रियाणाम्‌ |
अवाप्य भूमावसपत्रमृद्धं-
राज्यं सुराणामपि चाधिपत्यम्‌ ||

अर्जुन ने श्रीकृष्ण से कहा, कि......

क्योंकि भूमि में निष्कण्टक, धन-धान्य सम्पन्न राज्य को और देवताओं के स्वामीपने को प्राप्त होकर भी मैं उस उपाय को नहीं देखता हूँ, जो मेरी इन्द्रियों के सुखाने वाले शोक को दूर कर सके |

- भगवतगीता
- अध्याय 2, श्लोक 8
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