ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते
(Om purnamadah meaning in hindi)
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About this Shlok
इस श्लोक में परमपिता परमात्मा की महानता का वर्णन है | इसमें ये बताया गया है,कि ईश्वर सभी प्रकार से स्वयं में परिपूर्ण होने के साथ - साथ इस सम्पूर्ण जगत के प्राणियों में भी व्याप्त हैं | चाहे वह छोटी सी चींटी हो या फिर विशालकाय हाथी | हर जीव में ईश्वर निवास करते हैं, फिर भी वे परिपूर्ण हैं |
श्लोक इस प्रकार से है......
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥
अर्थ इस प्रकार से है........
अर्थ :
प्रस्तुत श्लोक में कहा जा रहा है, कि - सच्चिदानंदघन परब्रह्म पुरुषोत्तम परमात्मा सभी प्रकार से सदैव परिपूर्ण हैं। यह संसार भी उस परब्रह्म से ही पूर्ण है, क्योंकि यह पूर्ण ,उस परब्रह्म पूर्ण पुरुषोत्तम से ही तो उत्पन्न हुआ है। इस तरह, भले ही दुनिया परब्रह्म की पूर्णता के साथ पूर्ण हो, परन्तु परब्रह्म स्वयं परिपूर्ण है। उस पूर्ण से पूर्ण को हटा देने पर भी वह पूर्ण ही रहता है,अतएव परब्रह्म सदैव पूर्ण ही रहता है
In English :-
That is, that Sachchidanandaghan Parbrahma Purushottama Paramatma is always perfect in all ways. This world is also full of that Brahman, because it has originated from that perfect Purushottam itself. In this way, even if the world is complete with the perfection of the parabrahma, that parabrahma is perfect. Even after removing the full from that full, it remains the full.
सन्देश :-
ईश्वर हर एक प्राणी में हैं, चाहे वह जलीय हो स्थलीय हो या फिर नभचर | यह सम्पूर्ण संसार उनके ही निमित्त है |
परमात्मा के सभी प्राणियों में होने के बाद भी वे स्वयं में परिपूर्ण हैं |
हमें इस भाव को समझते हुए सभी से प्रेम भाव रखनी चाहिए और ईश्वर में असीम श्रद्धा रखनी चाहिए |
© कवि आशीष उपाध्याय "एकाकी"
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश
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