कः कालः कानि मित्राणि को देशः कौ व्ययगमौ
(Ethics of Chanakya)
Ethics of Chanakya |
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इस श्लोक में आचार्य चाणक्य कुछ महत्वपूर्ण बातों पर बार-बार चिंतन करने को कहते हैं |
कः कालः कानि मित्राणि को देशः कौ व्ययगमौ |
कश्चाहं का च में शक्तिरिटी चिन्त्यं मुहुर्मुहुः ||
अर्थ :-
Chanakya कहते हैं कि बुद्धिमान व्यक्ति को बार-बार यह सोचना चाहिए कि हमारे मित्र कितने हैं, हमारा समय कैसा है - अच्छा है या बुरा और यदि बुरा है तो उसे अच्छा कैसे बनाया | हमारा निवास-स्थान कैसा है (सुखद, अनुकूल), हमारी आय कितनी है और व्यय कितना है, मैं कौन हूँ ? आत्मा हूँ, अथवा शरीर, स्वाधीन हूँ अथवा पराधीन शक्ति कितनी है ?
सन्देश :-
इन समुच्य प्रश्नो पर विचार करते हुए मनुष्य को अपना जीवन व्यतीत करना चाहिए तथा आत्मकल्याण के लिए सदा प्रयत्नशील रहना चाहिए | जो व्यक्ति इन बातों पर विचार नहीं करता, वह पत्थर के सदृश निर्जीव ही है और सर्वदा लोगों के पावों के ठोकरे ही खाता रहता है | अतः हमें बहुत ही समझदारी से काम लेना चाहिए |
- चाणक्य निति से
© कवि आशीष उपाध्याय "एकाकी"
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश
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