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विद्यानाम नरस्य रूपमधिकम प्रच्छन्नगुप्तं धनं (Sanskritshlok Hindi)

विद्यानाम नरस्य रूपमधिकम प्रच्छन्नगुप्तं धनं 
 (Sanskritshlok Hindi)

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Sanskritshlok Hindi - Vidyanam Narasya
                                
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श्लोक में विद्याधन की महिमा का वर्णन किया गया है |

विद्यानाम नरस्य रूपमधिकम प्रच्छन्नगुप्तं धनं।
विद्या भोगकरी यशः सुखकरी विद्या गुरुणां गुरु: | |
विद्या बन्धुजनो विदेशगमने विद्या प्र देवता |
विद्या राजसु पूज्यते न हि धनं विद्याविहीनः पशुः ||

अर्थ 
 विद्या मनुष्य का सबसे सुंदर एवं विशिष्ट रूप है, अदृश्य गुप्तधन है | विद्या भोगों को देनेवाली अर्थात सभी इच्छाओं को पूर्ण करने वाली है, यश एवं सुख देनेवाली है , विद्या तो गुरुवो की भी गुरु है | विदेश में विद्या बंधुजन (भाईयों) के समान है , विद्या परम दिव्यतत्व है और देवतओं से भी बढ़कर है | राजाओं में धन का नहीं बल्कि विद्या का सम्मान होता है , अतः विद्याविहीन मनुष्य निश्चय ही पशु के समान है |

सन्देश :- 
हमें विद्यावान होना चाहिए ||

© आशीष उपाध्याय "एकाकी"
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश 
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