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प्रभूतं कार्यमल्पं वा यन्तरः कर्तुमिच्छति (Chanakya Neeti in Hindi)

प्रभूतं कार्यमल्पं वा यन्तरः कर्तुमिच्छति 
(Chanakya Neeti in Hindi) 

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Chanakya Neeti in Hindi

प्रभूतं कार्यमल्पं वा यन्तरः कर्तुमिच्छति।
सर्वारम्भेण तत्कार्यं सिंहदेकं प्रचक्षते।।

अर्थ :- 
इस श्लोक में आचार्य चाणक्य कहते है, कि काम छोटा हो या बड़ा, उसे एक बार हाथ में लेने के बाद छोड़ना नहीं चाहिए | उसे पूरी लगन एवं सामर्थ्य के साथ करना चाहिए। जिस प्रकार सिंह अपने द्वारा पकडे हुए शिकार को कभी नहीं छोड़ता। इसलिए शेर का यह एक गुण हमें अवश्य अपने जीवन में लेना चाहिए |


सन्देश :- 
हमें जो भी कार्य करना चाहिए वो पूरी लगन और ईमानदारी से करनी चाहिए।कार्य करते समय ये नहीं सोचना चाहिए कि किया जाने वाला कार्य छोटा है या बड़ा। जिस प्रकार शेर एक ही तरह की आक्रामक शैली से हाथी और मृग दोनों पर हमला करता है , ठीक ऐसी ही प्रवृति हमारी भी होनी चाहिए।

- चाणक्य निति से 

© कवि आशीष उपाध्याय "एकाकी"
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश  
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