बस, तुम ही, तुम हो....
Hindi Prem kavita- Tum hi, Tum ho... |
मेरे सुबह की पहली किरण,
ढलते शाम का तुम दीप हो,
तुम ही मेरे जीवन,
तुम ही प्रेम-प्रदीप हो।
मेरी यादों में तुम हो,
मेरे ख्वाबो में तुम हो,
मेरी सांसों में तुम हो,
मेरे जज़्बातों में तुम हो
तुमसे ही मै हूँ ,
और मुझसे ही तुम हो,
तुम ही मेरे साथी हो,
तुम ही मेरे मित हो।
तुम ही मेरी पूजा ,
मेरा उपवास भी तुम हो,
तुम ही मेरा सागर ,
मेरी प्यास भी तुम हो,
मुझसे गुमसुम रहने वाली,
आखिरी आस भी तुम हो।
मेरी स्मृतियों की तुम शासक,
तुम ही मेरी प्रीत हो।
मेरी ख़ुशियों में तुम हो,
मेरी अनुभूतियों में तुम हो,
मेरी गीतों में तुम हो,
मेरी श्रुतियोँ में तुम हो,
तेरे बिना मै नहीं,
न मेरे बिना तुम हो।
अब तो हर शब्द में मेरे
बस, तुम ही, तुम हो।
बस, तुम ही, तुम हो....
© कवि आशीष उपाध्याय "एकाकी"
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