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समर्पण (देश भक्ति कविता) - Patriotic Poem in Hindi

 समर्पण (देश भक्ति कविता) 
Patriotic Poem in Hindi

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Patriotic Poem in Hindi

किसी के जख्म का मरहम,
मैं बन, काम यूँ आऊँ ,
कि हर संताप पर का मैं ,
स्वकर्म में लीन हो जाऊँ। 

निकले मुख से जब वाणी,
तृप्त हो जाएँ सब प्राणी ,
धरा से प्रीति हो ऐसी ,
गगन को कभी न ललचाऊँ। 

स्वजननी, हिन्द की खातिर,
उठाना पड़े जो, तलवार, तरकस, तीर,
निज आहुति देकर ही,
देश के काम मैं आऊँ। 

प्रतिज्ञा भीष्म सदृश हो,
एकाग्र सम अर्जुन बन जाऊँ,
कभी अभिमान न होवे ,
विष अपमान का भी पी जाऊँ। 

बनूँ उस बाट का बट मैं ,
भानू का तेज भी सह जाऊँ,
पथिक चाहे कोई भी हो,
उसे, शीतल,तृप्त कर जाऊँ। 

जना जिस मिटटी में जननी ने,
कि पाला जहाँ करणी ने ,
भगत, गुरु,सुखदेव, चंद्र जैसे,
उसी मिट्टी में मिल  जाऊँ।

कभी फिर जन्म यदि पाऊँ,
हिन्द के काम मैं आऊँ,
पुनः, 
सबकी ग्लानि को पीकर ,
सदैव के लिए अमर हो जाऊँ।

© कवि आशीष उपाध्याय "एकाकी"
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश 
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