तेरे होठों की लाली
तेरे होठों की लाली,
बड़ी लुभावन लगती है।
कभी बसंत की बहार,
तो, कभी सावन लगती है।।
इनके बदलते रंगो में तूँ,
बड़ी सुहावन लगती है।
कभी तू शीतल लगती है,
कभी तू पावन लगती है।।
तेरी कातिल निगाहें ही,
मुझे पागल बनाती हैं।
तनिक इन नयनों से पूछो,
कितनी मनभावन लगती हैं ।।
© कवि आशीष उपाध्याय "एकाकी"
0 Comments
Please do not enter any spam link in the comment box.
Emoji