युगान्ते प्रचलते मेरुः कल्पान्ते सप्त सागराः
(Chanakya Updesh in Hindi)
युगान्ते प्रचलते मेरुः कल्पान्ते सप्त सागराः।
साधवः प्रतिपन्नार्थान न चलन्ति कदाचन।|
श्रेष्ठ जनों के जीवन में चाहे कितनी भी विपत्तियां क्यों न आए , परन्तु वे अपने लक्ष्य से कभी विचलित नहीं होते। वे अपने सिद्धांतो पर अडिग रहते हैं और परसेवा में अपना जीवन व्यतीत कर देते हैं।
अर्थ :-
आचार्य कहते है कि प्रलय काल में चाहे मेरु पर्वत डगमगा जाए और कल्प के अंत में सातों सागर चाहे अपनी मर्यादा छोड़ दें, परन्तु महान विभूतियाँ, श्रेष्ठ एवं सज्जन पुरुष अपने लक्ष्य से कभी विचलित नहीं होते।
सन्देश :-
हमें भी उपरोक्त गुणों को अपने जीवन में समाहित करना चाहिए और हमेशा सत्य का सहारा लेते हुए अपने निश्चित किये हुए कार्यों को करते हुए अपने मार्ग पर पर्वत की तरह अडिग रहना चाहिए, फिर चाहे जीवन में कैसी भी परिस्थिति क्यों न हो ?
- चाणक्य निति से
© कवि आशीष उपाध्याय "एकाकी"
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश
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