Bhagwat Geeta shlok- lesson of life
Bhagwat Geeta shlok
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इस श्लोक श्री कृष्ण के मुख से आत्मनियंत्रण की बात कही गयी है।
बन्धुरात्मनस्तस्य येनात्मैवात्मना जितः।
अनात्मनस्तु शत्रुत्वे वर्तेतात्मैव शत्रुवत।।
अर्थ :-
जिस जीवात्मा द्वारा मन और इन्द्रियों सहित शरीर जीता हुआ है, उस जीवात्मा का तो वह आप ही मित्र है और जिसके द्वारा मन तथा इन्द्रियों सहित शरीर नहीं जीता गया है, उसके लिए वह आप ही शत्रु के सदृश शत्रुता में बर्तता है।
सन्देश :-
हमें अपने मन और सभी इन्द्रियों को भली प्रकार अपने वश में रखना चाहिए, जिससे हम पाप से बचे रहेंगे और दिन-प्रतिदिन उन्नति करते रहेंगे। ऐसा करने से किसी इच्छित वस्तु न प्राप्त होने से हमारे मन में असंतोष भावना नहीं आएगी और न ही हम अनायास दुःखी होंगे।
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