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परोक्षे कार्यहन्तारं प्रत्यक्षे प्रियवादिनं - Chanakya Quotes

परोक्षे कार्यहन्तारं प्रत्यक्षे प्रियवादिनं -
Chanakya Quotes

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Chanakya Quotes

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इस श्लोक में आचार्य चाणक्य ने मित्र के लक्षणों के बारे में बताया है।

परोक्षे कार्यहन्तारं प्रत्यक्षे प्रियवादिनं।
वर्जयेतादृशं मित्रं विषकुम्भं पयोमुखं।।

अर्थ:- 
जो मित्र प्रत्यक्ष रुप से मधुर एवं बहुत ही लुभावनें वचन बोलता है और पीठ पीछे अर्थात अप्रत्यक्ष रूप से आपके सारे कार्यों में अवरोध उत्पन्न करता है, ऐसे ,मित्र को उस घड़े के समान त्याग देना चाहिए जिसके भीतर विष भरा हो और ऊपर मुख के पास दूध भरा हो।

सन्देश:- 
हमें अपने ऐसे मित्रों को त्याग देना चाहिए हो आपके समक्ष आपके बारे में बहुत ही अच्छी बात करते हैं और आपके न रहने पर आपके सारे काम खराब कर देते है। ऐसे मित्र परम शत्रु होते हैं।

- चाणक्य निति से 

© कवि आशीष उपाध्याय "एकाकी"
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश  


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