अनालोक्य व्ययं कर्ता ह्यनाथः कलहप्रियः -
Chanakya Vachan
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इस श्लोक मे आचार्य चाणक्य ने मनुष्य के ऐसे लक्षणों के बारे में बताया है , जो उसके शीघ्र ही विनाश का कारन बन सकती है |
अनालोक्य व्ययं कर्ता ह्यनाथः कलहप्रियः |
आतुरः सर्वक्षेत्रेषु नरः शीघ्र विनश्यति ||
अर्थ :-
बिना विचार के खर्च करने वाला, अकेले रहकर झगड़ा करने वाला और सभी जगह व्याकुल रहने वाला मनष्य शीघ्र ही नष्ट हो जाता है |
सन्देश :-
हमें अपने जीवन में कुछ उपयोगी बातें ध्यान रखना चाहिए |
१. खर्च अपनी आय के अनुसार करना चाहिए |
२. अकेले रहकर किसी भी शत्रु से झगड़ा नहीं करना चाहिए, नहीं तो हमारा शत्रु हमें ही नष्ट कर देगा|
३. हर समय बिना किसी बात के चिंता नहीं करना चाहिए ऐसा करने से हमारा स्वास्थ्य क्षीण हो जायेगा और हम असमय ही अपने आप को ख़त्म कर लेंगे |
- चाणक्य निति से
© कवि आशीष उपाध्याय "एकाकी"
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश
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