जलबिन्दुनिपातेन क्रमशः पूर्यते घटः -
Chanakya's Ethics
Chanakya's Ethics in Hindi |
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इस श्लोक में आचार्य ने धन और विद्या के बारे में बताया है , जो मनुष्य को धीरे-धीरे संचय और अभ्यास से प्राप्त होते हैं |
जलबिन्दुनिपातेन क्रमशः पूर्यते घटः |स हेतुः सर्वविद्यानां धर्मस्य च धनस्य च ||
-भावार्थ ::--
जिस प्रकार पानी की एक-एक बूँद गिरने से घड़ा भर जाता है ठीक उसी प्रकार धीरे-धीरे अभ्यास करने से सब विद्याओं की प्राप्ति हो जाती है , इसी प्रकार थोड़ा-थोड़ा करके धर्म और धन का सञ्चय भी हो जाता है ।
सन्देश :-
हमें किसी भी कार्य में शीघ्रता नहीं करनी चाहिए , नहीं तो हमारे सारे काम बिगड़ जाते हैं |
- चाणक्य निति से
© कवि आशीष उपाध्याय "एकाकी"
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश
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