सुश्रान्तोअपि वहेद् भारं शीतोष्णं च न पश्यति
(Chanakya niti shloka in Hindi)
Chanakya Niti Shloka in Hindi |
About this Shlok
इस श्लोक मे गधे का उदहारण देकर संतोष के साथ अपने कार्यो को करने के बारे में बताया है |
सुश्रान्तोअपि वहेद् भारं शीतोष्णं च न पश्यति |संतुष्ट च चरते नित्यं त्रीणि शिक्षेच्च गर्दभात् |
अर्थ :-
अत्यंत थक जाने पर भी बोझ को ढोना, ठंडे-गर्म का विचार न करना, सदा संतोषपूर्वक विचरण करना, ये तीनों बातें गधे से सीखनी चाहिए |
सन्देश:-
बुद्धिमान व्यक्ति को कभी भी अपने कार्यो से विमुख नहीं होना चाहिए और न ही उसे अपने कार्यो को बोझ ही समझना चाहिए | मौसम के प्रभाव को अपने कार्य सिद्धि हेतु अनदेखा कर देना चाहिए |
- चाणक्य निति से
© कवि आशीष उपाध्याय "एकाकी"
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश
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