आत्मवर्गं परित्यज्य परवर्गं स्मश्रेयत् (जो व्यक्ति अपनों का न हुआ)
Chanakya neeti Quotes in Hindi
आत्मवर्गं परित्यज्य परवर्गं स्मश्रेयत् |स्वयमेव लयं याति तथा राजान्यधर्मतः |
अर्थ:-
जो अपने वर्ग अर्थात अपने हितैषी जनो को त्यागकर दूसरे वर्ग का आश्रय लेता है, वह स्वयं ही नष्ट हो जाता है,जैसे राजा अधर्म के द्वारा नष्ट हो जाता है | उसके पाप कर्म उसे नष्ट कर डालते हैं |
सन्देश:-
जो व्यक्ति अपनों का न हुआ वह दूसरों का कभी नहीं हो सकता ||
- चाणक्य निति से
© कवि आशीष उपाध्याय "एकाकी"
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश
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