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वृथा वृष्टिः समुद्रेषु (समुद्र में वर्षा का होना व्यर्थ है) Shlok in Sanskrit (Chanakya Niti Hindi)

वृथा वृष्टिः समुद्रेषु (समुद्र में वर्षा का होना व्यर्थ है)  
Shlok in Sanskrit (Chanakya Niti Hindi)

 Shlok in Sanskrit (Chanakya Niti Hindi)

वृथा वृष्टिः समुद्रेषु वृथा तृप्तेषु  भोजनम्  |
वृथा दानं धनाढ्येषु वृथा दीपो दिवापि च | | 

अर्थ:-
 समुद्र में वर्षा का होना व्यर्थ है, तृप्त व्यक्ति को भोजन कराना व्यर्थ है , धनिक को दान देना व्यर्थ है और दिन में दीपक जलना व्यर्थ है | 

सन्देश :-
बिना आवश्यकता के किसी भी वस्तु को किसी को देना निरर्थक है, व्यर्थ है
   
 - चाणक्य निति से 

© कवि आशीष उपाध्याय "एकाकी"
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश  
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