आचारः प्रथमो धर्मः इत्येतद् विदुषां वचः
(Acharah prathamo dharmah in Hindi)
About
इस श्लोक में आचरण की रक्षा पर बल दिया गया है |
आचारः प्रथमो धर्मः इत्येतद् विदुषां वचः।तस्माद् रक्षेत् सदाचारं प्राणेभ्योऽपि विशेषतः॥
अर्थात्
विद्वानों अर्थात् प्रबुद्ध जनों का ये मत है, कि अपने आचरण की रक्षा करना हर व्यक्ति सर्वप्रथम धर्म है | इसलिए हमें प्राणों से बढ़कर भी अपने आचरण की रक्षा करनी चाहिए |
संदेश
समाज में हर व्यक्ति का आचरण ही उसकी महानता और उसकी नीचता सूचक है | यदि ऐसा कोई व्यक्ति है, जो हर गलत काम करता है, जो स्वच्छ समाज के प्रतिकूल है तो वास्तव में वह अपने आचरण को मैला कर रहा है |
परन्तु ऐसा कोई व्यक्ति है, जो निरंतर सात्विक कार्यों में लगा हुआ है, जिससे हर कोई उसके ही गुणगान गाता है तो निश्चित ही वह व्यक्ति अपना आचरण चमत्कृत कर रहा है |
© कवि आशीष उपाध्याय "एकाकी"
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश
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