आतुरे व्यसने प्राप्ते दुर्भिक्षेत्र शत्रुसंकटे -
Aature Vyasane Prapte in Hindi
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इस श्लोक में आचार्य चाणक्य ने स्पष्ट रूप से बताया है, कि हमारा भाई अर्थात् हितैषी कौन है ?
आतुरे व्यसने प्राप्ते दुर्भिक्षेत्र शत्रुसंकटे।राजद्वारे श्मशाने च यस्तिष्ठति स बांधव:।
अर्थात्
आचार्य कहते हैं, कि जो व्यक्ति आपकी बीमारी में, विपत्ति (संकट) के समय, अकाल अर्थात् जब आपके पास कुछ न हो उस समय, दुश्मनों के द्वारा घिर जाने अर्थात् यदि किसी दुश्मन के द्वारा आपको परेशान किया जा रहा हो उस समय, गवाही के समय अर्थात् यदि आप अनायास ही किसी संकट में फस गए है और उस व्यक्ति कहने मात्र से आप उस संकट से मुक्त हो जाने वाले हैं, और श्मशान में जो आपके साथ है वही व्यक्ति आपका भाई है अर्थात् सच्चा हितैषी है |
संदेश
हमें ऐसे लोगों का संग करना चाहिए, जो हमारे हितैषी हों |
- चाणक्य निति से
© कवि आशीष उपाध्याय "एकाकी"
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश
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