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को भारः समर्थानां, किं दूरं व्यवसयिनाम् (Ko bharah samarthanam in Hindi)

को भारः समर्थानां, किं दूरं व्यवसयिनाम् 
(Ko Bharah samarthanam in Hindi)

ko bharah samarthanam in hindi, को भारः समर्थानां, किं दूरं व्यवसयिनाम् | को विदेशः सविद्यानां, कः परः प्रियवादिनाम् || sanskrit shlok in hindi
ko bharah samarthanam in hindi

About
इस श्लोक के माध्यम से ये स्पष्ट रूप से बताया गया है, कि जो व्यक्ति स्वयं में समर्थवान है, उसके लिए सारे काम आसान हो जाते हैं |  

को भारः समर्थानां, किं दूरं व्यवसयिनाम् |
को विदेशः सविद्यानां, कः परः प्रियवादिनाम् ||
अर्थात्
जिस प्रकार से किसी शक्तिशाली व्यक्ति के लिए कोई भार उठाना आसान है, किसी व्यावसायिक व्यक्ति के कोई जगह दूर नहीं है, जहां वह व्यवसाय के लिए जा न सके | विद्यावान व्यक्ति के लिए कोई जगह विदेश नहीं है अर्थात् वह अपने ज्ञान से सब जगह बढ़िया से अपने जीवन को जी सकता है , ठीक उसी प्रकार जो व्यक्ति मृदुभाषी है अर्थात् मीठा बोलने वाला है उसके लिए कोई भी व्यक्ति पराया नहीं है | 

संदेश 
हमें सदैव अपने आप पर विश्वास रखना चाहिए और मीठा बोलना चाहिए | ऐसा करने से हमें आंतरिक संतुष्टि मिलेगी और हमारी प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी |

© कवि आशीष उपाध्याय "एकाकी"
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश 
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