धनानि जीवितं चैव परार्थे प्राज्ञ उत्सृजेत् -
Dhanani jivitam chaiv in Hindi
Dhanani jivitam chaiv in Hindi |
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इस श्लोक में एक बुद्धिमान और धनवान व्यक्ति के द्वारा उनके बुद्धि और धन की उपयोगिता के बारे में बताया गया है |
धनानि जीवितं चैव परार्थे प्राज्ञ उत्सृजेत् |तन्निमित्तो वरं त्यागो विनाशे नियते सति ||
अर्थात्
ऐसे व्यक्ति जो बुद्धिमान हैं और धनवान हैं उन्हें ऐसे व्यक्तियों की प्राणरक्षा अर्थात् उनकी सेवा में अपनी बुद्धि और धन से लगे रहना चाहिए, जो संकट ग्रस्त अर्थात् परेशान हैं |
इस कल्याणकारी कार्य के लिए धन और बुद्धि का दूसरे के लिए त्याग अर्थात् समुचित सदुपयोग करना ही श्रेयस्कर है, क्योंकि अंततः धन का नाश होना तो निश्चित ही है |
संदेश
हमें अपने ज्ञान और धन सदुपयोग समाज के कल्याण में करते रहना चाहिए |
© कवि आशीष उपाध्याय "एकाकी"
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश
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