यस्मिन् देशे न सम्मानो न वृत्तिर्न च बान्धवाः
(Yasmin deshe na sammano in hindi)
इस श्लोक में आचार्य चाणक्य ने जीवन की महत्ता को समझाते हुए ये बताया है, कि हमें उसी स्थान पर रहना चाहिए जहां एक साधारण आचरण से युक्त व्यक्ति निश्चिंत होकर रह सकता है |
यस्मिन् देशे न सम्मानो न वृत्तिर्न च बान्धवाः |न च विद्यागमोSप्यस्त्ति वासस्तत्र न कारयेत् ||
अर्थात्
आचार्य चाणक्य विशेष रूप से कहते हैं, कि जिस देश में अर्थात् जिस स्थान पर आपका सम्मान न हो, जहां जीवन यापन हेतु आजीविका का कोई साधन न हो और आपका कोई भाई अर्थात् हितैषी न हो | जहां विद्या प्राप्ति का कोई साधन न हो, वहां कभी भी निवास नहीं करना चाहिए |
संदेश
हमें ऐसे स्थान पर ही निवास करना चाहिए, जो एक साधारण दिनचर्या के अनुकूल हो और जहां वे सभी सुख सुविधाएं मौजूद हों, एक साधारण व्यक्ति को जीवन जीने हेतु प्रेरित करें |
- चाणक्य निति से
© कवि आशीष उपाध्याय "एकाकी"
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश
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