आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः
(alasya hi manushyanam shrirastho mahan ripu)
alasya hi manushyanam shrirastho mahan ripu |
About
इस श्लोक में आलस्य और परिश्रम में भेद स्थापित करते परिश्रम की महत्ता को समझाया गया है |
आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः |नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति ||
अर्थात् :
सभी मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही उनका सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम (उद्यम) के समान अन्य कोई दूसरा मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |
संदेश
परिश्रम ही असल में सबका मित्र है | परिश्रम करने से आलस्य दूर भाग जाता है और हृदय में आंतरिक चेतना जागृत होती है | अतः हमें अपने कर्मों के निहित सदैव परिश्रम में लगे रहना चाहिए |
© कवि आशीष उपाध्याय "एकाकी"
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश
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