Ticker

6/recent/ticker-posts

आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः (alasya hi manushyanam shrirastho mahan ripu)

आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः 
(alasya hi manushyanam shrirastho mahan ripu)

alasya hi manushyanam shrirastho mahan ripu, आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः |  नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || alasyam hi shlo
alasya hi manushyanam shrirastho mahan ripu

About
इस श्लोक में आलस्य और परिश्रम में भेद स्थापित करते परिश्रम की महत्ता को समझाया गया है |

आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | 
नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति ||
 
अर्थात् : 
सभी मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही उनका सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम (उद्यम) के समान अन्य कोई दूसरा मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |

संदेश 
परिश्रम ही असल में सबका मित्र है | परिश्रम करने से आलस्य दूर भाग जाता है और हृदय में आंतरिक चेतना जागृत होती है | अतः हमें अपने कर्मों के निहित सदैव परिश्रम में लगे रहना चाहिए |


 © कवि आशीष उपाध्याय "एकाकी"
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश 
Reactions

Post a Comment

0 Comments