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त्यक्त्वा धर्मप्रदां वाचं परुषां योऽभ्युदीरयेत् (Tyaktwa dhrmpradam vacham in hindi)

त्यक्त्वा धर्मप्रदां वाचं परुषां योऽभ्युदीरयेत् 
(Tyaktwa Dhrmpradam Vacham in Hindi)

Tyaktwa Dhrmpradam Vacham in Hindi

About
इस श्लोक के माध्यम से हर व्यक्ति को किस प्रकार से आचरण करना चाहिए, इस बात को बहुत ही सुन्दर तरीके से समझाया गया है |

त्यक्त्वा धर्मप्रदां वाचं परुषां योऽभ्युदीरयेत्।
परित्यज्य फलं पक्वं भुङ्क्तेऽपक्वं विमूढधीः॥

अर्थात्
जो मनुष्य धर्मदायी बातों को छोड कर कठोर बाते बोलता है, वह मूर्खमति (मनुष्य ऐसा समझो कि जैसे) पका हुआ फल छोड कर कच्चे फल को खाता है।

अर्थात्
जो व्यक्ति धर्म के अनुकूल कर्म को छोड़कर अर्थात् धार्मिक बातों को छोड़कर अन्य कठोर बातों को जो सामाजिक नहीं है, करता है तो वह ठीक उसी प्रकार से बर्ताव करता है जैसे कोई पके हुए मीठे फल को छोड़कर कच्चे फल को कहता है |

साधारण शब्दों में -
 धर्म अर्थात् जो मानवीय कर्म और आचरण है, उसको छोड़कर यदि कोई व्यक्ति अमानवीय कर्म करता है, तो वह उसी प्रकार का बर्ताव करता है अर्थात् आचरण करता है जैसे किसी के पास पका हुआ और कच्चा फल दोनों रखा हो, लेकिन वह कच्चा फल खाए |

संदेश
हर व्यक्ति को हमेशा सोच समझकर सुंदर आचरण करना चाहिए |

© कवि आशीष उपाध्याय "एकाकी"
गोरखपुर, उत्तर - प्रदेश 
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