पलायन पर कविता
Palayan par kavita in hindi
पलायन !
ये शब्द सुनते ही
उस बटोही की मुरझाई सूरत
आंखों के सामने आ जाती है |
और याद आ जाता है,
उसका मीलों चलना ,
उसका घर पहुंचते ही
घर की चौखट पे गिर के दम तोड देना |
सबको जान पड़ा कि वो अब नहीं रहा,
उसकी नई - नवेली दुल्हन चूड़ियां तोड़ने लगी |
अम्मा गौशाले में दही बना रही थी ,
ये खबर सुनते अम्मा उसी चूल्हे पर गिर पड़ी ,
और लेट गई, प्रकृति की गोद में, हमेशा के लिए |
बिलबिलाते बच्चे, बटोही को ऐसे देख रहे थे,
जैसे संध्या का लाल सूरज आकाश को देखता,
डूब रहा हो |
बाबूजी तो स्तब्ध होकर खंभे से ऐसे चिपके थे ,
जैसे किसी ने उनको खंभे से ही फांसी लगा दिया हो |
कुछ ही घंटों में अब सारा मंजर बदल चुका था ,
अब घर में थीं , मां और बेटे की दो लाशें , विधवा युवती , बच्चे,
और ज़िन्दगी और मौत से जूझता लाचार बाप !
© कवि आशीष उपाध्याय "एकाकी"
गोरखपुर, उत्तर - प्रदेश
Image Credit :- YouQuote
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