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NCERT Class 7 Chapter 1 Sollution

NCERT Class 7 Chapter 1 Sollution
सुभाषितानि 


Shlok - 1  About इस श्लोक के माध्यम से अन्न, जल और सुंदर वचन की महत्ता को बताया गया है |   पृथिव्या त्रीणि रत्नानि जमन्नंसुभाषितम् | मूढैः पाषाणखण्डेषु रत्नसंज्ञा विधीयते ||  पृथ्वी पर तीन ही रत्न हैं, अन्न, जल और सुंदर वचन | लेकिन मूर्ख लोगों ने पत्थर के टुकड़ों (हीरा, पन्ना, मूंगा आदि) को ही रत्न की संज्ञा दी है अर्थात पत्थर के टुकड़ों को अन्न, जल और सुंदर वचन की जगह रत्न कहा है |  संदेश हमें एक विवेकशील मनुष्य की तरह सोचना चाहिए और और विभिन्न प्रकार की निरर्थक भ्रांतियों में नहीं फंसकर इस श्लोक में लिखित बातों पर विचार करना चाहिए |  Shlok - 2  About इस श्लोक के माध्यम से सत्य की महत्ता को समझाया गया है |   सत्येन धार्यते पृथ्वी सत्येन तपते रविः | सत्येन वाति वायश्च सर्वं सत्ये प्रतिष्ठतम् ||  सत्य के द्वारा पृथ्वी धारण की जाती है, सत्य से ही सूर्य तपता है अर्थात सत्य से ही सूर्य में तपन अर्थात ऊष्मा है | सत्य से ही हवा चलती है अर्थात बहती है | सारा संसार सत्य के द्वारा ही प्रतिष्ठित है |  संदेश हमें अपने मन, कर्म और वचन से सदैव में ही नियत रहना चाहिए |  Shlok - 3  About इस श्लोक में पृथ्वी एवं उसपे उपलब्ध रत्नों की महत्ता को उजागर किया गया है |  दाने तपसि शौर्ये च विज्ञाने विनये नये | विस्मयो न हि कर्तव्यो बहुरत्ना वसुन्धरा ||   दान , तप , वीरता , विज्ञान और नीति इनके विषय में कभी किसी को विस्मित होना ही नहीं चाहिये। क्योंकि पृथ्वी बहुत से रत्न भरे पड़ी है।  संदेश कभी भी अभिमान नहीं करना चाहिए, कि हम ही सबकुछ हैं, क्योंकि पृथ्वी पर आपके अलावा बहुत सारे विद्वान लोग भी है | उन्हें देखकर हमें उनके दिव्य गुणों को अपने अंदर समाहित करना चाहिए |   Shlok - 4  About इस श्लोक के माध्यम से सज्जन व्यक्तियों की महत्ता को बखूबी बताया गया है |  सभ्दिरेव सहासीत सद्भिः कुर्वीत सङ्गतिम् | सभ्दिर्विवादं मैत्रीं च नासभ्दीः किञ्चिदाचरेत्।  सज्जन लोगो के साथ ही रहना चाहिए, सज्जन लोगो की ही संगति करनी चाहिए। मित्रता, लड़ाई और बहस भी सज्जन लोगो के साथ ही करनी चाहिए। दुर्जनों के साथ किसी प्रकार का सम्बन्ध नहीं रखना चाहिए या आचरण नहीं करना चाहिए।  संदेश  सज्जनों की संगति सदैव मंगल करने वाली है | वहीं इसके विपरित दुर्जन अर्थात बुरी आदतों वाले व्यक्तियों की संगति सदैव दुखदायक है |   Shlok - 5  About  इस श्लोक के माध्यम से मनुष्य के चातुर्य एवं विवेकशीलता के महत्व को समझाया गया है |  धन्धान्यप्रयोगेषु विद्यायाः संग्रहेषु च | आहारे व्यवहारे च त्यक्तलज्जः सुखी भवेत् ||  धन और धन्य अर्थात अन्न के प्रयोग में तथा विद्या के संग्रह में कभी भी संकोच नहीं करना चाहिए । व्यव्हार और आहार अर्थात् भोजन में लज्जा का त्याग करने वाला ही सुखी रहता है।  संदेश हमें कभी भी व्यवहार और आहार में किसी भी तरह से लज्जा नहीं करना चाहिए | ऐसा कारण हमारे लिए मानसिक एवं शारीरिक दुखों का कारण हो सकता है |   Shlok - 6  About इस श्लोक में क्षमा की महत्ता को समझाया गया है |  क्षमावशीकृतिर्लोके क्षमया किं न साध्यते | शान्तिखडगः करे यस्य किं करिष्यति दुर्जनः |  इस संसार में क्षमा वशीकरण है अर्थात के द्वारा सबको वशीभूत किया जा सकता है | अतः क्षमा के द्वारा क्या सिद्ध नहीं हो सकता ? इस व्यक्ति के हाथ में यह शांति रूपी तलवार है उसका दुर्जन व्यक्ति भी क्या कर सकता है ? अतः क्षमा के द्वारा सबकुछ किया जा सकता है |  संदेश हमें क्षमा रूपी महान गुण को अपने छोटे से जीवन में ग्रहण करके महान बनने की ओर अपने मन को लगाना चाहिए |  - KAVI ASHISH UPADHYAYNCERT Class 7 Chapter 1 Sollution, ncert sanskrit class 7 chapter 1 sollutions subhashitani, ncert class 7 subhashitani sollutions, subhashitani hindi
NCERT Class 7 Sanskrit Chap 1 Sollution



Shlok - 1

About
इस श्लोक के माध्यम से अन्न, जल और सुंदर वचन की महत्ता को बताया गया है |


पृथिव्या त्रीणि रत्नानि जमन्नंसुभाषितम् |
मूढैः पाषाणखण्डेषु रत्नसंज्ञा विधीयते ||

पृथ्वी पर तीन ही रत्न हैं, अन्न, जल और सुंदर वचन | लेकिन मूर्ख लोगों ने पत्थर के टुकड़ों (हीरा, पन्ना, मूंगा आदि) को ही रत्न की संज्ञा दी है अर्थात पत्थर के टुकड़ों को अन्न, जल और सुंदर वचन की जगह रत्न कहा है |

संदेश
हमें एक विवेकशील मनुष्य की तरह सोचना चाहिए और और विभिन्न प्रकार की निरर्थक भ्रांतियों में नहीं फंसकर इस श्लोक में लिखित बातों पर विचार करना चाहिए |

Shlok - 2

About
इस श्लोक के माध्यम से सत्य की महत्ता को समझाया गया है |


सत्येन धार्यते पृथ्वी सत्येन तपते रविः |
सत्येन वाति वायश्च सर्वं सत्ये प्रतिष्ठतम् ||

सत्य के द्वारा पृथ्वी धारण की जाती है, सत्य से ही सूर्य तपता है अर्थात सत्य से ही सूर्य में तपन अर्थात ऊष्मा है |
सत्य से ही हवा चलती है अर्थात बहती है | सारा संसार सत्य के द्वारा ही प्रतिष्ठित है |

संदेश
हमें अपने मन, कर्म और वचन से सदैव में ही नियत रहना चाहिए |

Shlok - 3

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इस श्लोक में पृथ्वी एवं उसपे उपलब्ध रत्नों की महत्ता को उजागर किया गया है |

दाने तपसि शौर्ये च विज्ञाने विनये नये |
विस्मयो न हि कर्तव्यो बहुरत्ना वसुन्धरा ||


दान , तप , वीरता , विज्ञान और नीति इनके विषय में कभी किसी को विस्मित होना ही नहीं चाहिये। क्योंकि पृथ्वी बहुत से रत्न भरे पड़ी है।

संदेश
कभी भी अभिमान नहीं करना चाहिए, कि हम ही सबकुछ हैं, क्योंकि पृथ्वी पर आपके अलावा बहुत सारे विद्वान लोग भी है | उन्हें देखकर हमें उनके दिव्य गुणों को अपने अंदर समाहित करना चाहिए |


Shlok - 4

About
इस श्लोक के माध्यम से सज्जन व्यक्तियों की महत्ता को बखूबी बताया गया है |

सभ्दिरेव सहासीत सद्भिः कुर्वीत सङ्गतिम् |
सभ्दिर्विवादं मैत्रीं च नासभ्दीः किञ्चिदाचरेत्।

सज्जन लोगो के साथ ही रहना चाहिए, सज्जन लोगो की ही संगति करनी चाहिए। मित्रता, लड़ाई और बहस भी सज्जन लोगो के साथ ही करनी चाहिए। दुर्जनों के साथ किसी प्रकार का सम्बन्ध नहीं रखना चाहिए या आचरण नहीं करना चाहिए।

संदेश 
सज्जनों की संगति सदैव मंगल करने वाली है | वहीं इसके विपरित दुर्जन अर्थात बुरी आदतों वाले व्यक्तियों की संगति सदैव दुखदायक है |


Shlok - 5

About 
इस श्लोक के माध्यम से मनुष्य के चातुर्य एवं विवेकशीलता के महत्व को समझाया गया है |

धन्धान्यप्रयोगेषु विद्यायाः संग्रहेषु च |
आहारे व्यवहारे च त्यक्तलज्जः सुखी भवेत् ||

धन और धन्य अर्थात अन्न के प्रयोग में तथा विद्या के संग्रह में कभी भी संकोच नहीं करना चाहिए । व्यव्हार और आहार अर्थात् भोजन में लज्जा का त्याग करने वाला ही सुखी रहता है।

संदेश
हमें कभी भी व्यवहार और आहार में किसी भी तरह से लज्जा नहीं करना चाहिए | ऐसा कारण हमारे लिए मानसिक एवं शारीरिक दुखों का कारण हो सकता है |


Shlok - 6

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इस श्लोक में क्षमा की महत्ता को समझाया गया है |

क्षमावशीकृतिर्लोके क्षमया किं न साध्यते |
शान्तिखडगः करे यस्य किं करिष्यति दुर्जनः |

इस संसार में क्षमा वशीकरण है अर्थात के द्वारा सबको वशीभूत किया जा सकता है | अतः क्षमा के द्वारा क्या सिद्ध नहीं हो सकता ?
इस व्यक्ति के हाथ में यह शांति रूपी तलवार है उसका दुर्जन व्यक्ति भी क्या कर सकता है ?
अतः क्षमा के द्वारा सबकुछ किया जा सकता है |

संदेश
हमें क्षमा रूपी महान गुण को अपने छोटे से जीवन में ग्रहण करके महान बनने की ओर अपने मन को लगाना चाहिए |

- KAVI ASHISH UPADHYAY

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