भगवदगीता अध्याय 3, श्लोक 16 - (एवं प्रवर्तितं चक्रं नानुवर्तयतीह यः)
Bhagwadgeeta Adhyay 3, Shlok 16 in Hindi
एवं प्रवर्तितं चक्रं नानुवर्तयतीह यः ।
अघायुरिन्द्रियारामो मोघं पार्थ स जीवति ॥
श्री भगवान ने कहा
हे पृथापुत्र! जो मनुष्य जीवन में इस प्रकार वेदों द्वारा स्थापित यज्ञ-चक्र (नियत-कर्म) का अनुसरण नहीं करता हैं, वह निश्चय ही पापमय जीवन व्यतीत करता है। ऎसा मनुष्य इन्द्रियों की तुष्टि के लिये व्यर्थ ही जीता है |
- भगवतगीता
- अध्याय 3, श्लोक 16
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