तुम्हारी यादों के वो फूल
तुम्हारी यादों के वो फूल - Romantic poem |
About Poem
एक प्रेमी जो अपनी प्रेमिका से दूर है । जिससे उसकी कभी - कभी ही बात हो पाती है और मुलाकात हो तो कई महीने बीत जाते हैं । अब इस हाल में पिछली बात - चीत की यादों को संजोकर रखना और उन यादों में ही अगली अपनी प्रियतमा को महसूस करना उस प्रेमी के लिए एक मात्र रास्ता बचा है । प्रेमी को उसकी याद फूलों के जैसे लगते हैं , जिन्हें वह अपने सीने से लगाकर रखना चाहता है । इसी तरह के भाव को लेकर इस कविता की रचना की गई और नाम भी प्रेमी की बेचैनियों के अनुरूप " तुम्हारी यादों के वो फूल रखा गया है ।"
इस कविता के रचनाकार कवि आशीष उपाध्याय हैं | ये कविता पढ़कर कैसा अनुभव हुआ, हमारे साथ जरूर साझा करें ।
तेरे होठों की वो नरमी,
चमकते चेहरे का वो नूर ।
संजोकर रखे हैं मैने,
तुम्हारी यादों के वो फूल ।।
कभी मदमस्त हवाओं में,
कभी प्यासी घटाओं में ।
मुझे अब दिखते हैं जानम,
तुम्हारी यादों के वो फूल । ।
कोई तुम - सा नहीं दिखता,
जिसे मैं प्यार से लिखता ।
लिखूं वो गीत, जिसमे हैं,
तुम्हारी यादों के वो फूल ।।
तुम्हें भी प्यार है मुझसे,
मुझे भी प्यार है तुमसे ।
प्यार में प्यारे लगते हैं,
तुम्हारी यादों के वो फूल ।।
कभी जो दूर जाती हो,
बहुत ही याद आती हो,
सहारा देते हैं मुझको,
तुम्हारी यादों के वो फूल ।।
चमकते चेहरे का वो नूर ।
संजोकर रखे हैं मैने,
तुम्हारी यादों के वो फूल ।।
कभी मदमस्त हवाओं में,
कभी प्यासी घटाओं में ।
मुझे अब दिखते हैं जानम,
तुम्हारी यादों के वो फूल । ।
कोई तुम - सा नहीं दिखता,
जिसे मैं प्यार से लिखता ।
लिखूं वो गीत, जिसमे हैं,
तुम्हारी यादों के वो फूल ।।
तुम्हें भी प्यार है मुझसे,
मुझे भी प्यार है तुमसे ।
प्यार में प्यारे लगते हैं,
तुम्हारी यादों के वो फूल ।।
कभी जो दूर जाती हो,
बहुत ही याद आती हो,
सहारा देते हैं मुझको,
तुम्हारी यादों के वो फूल ।।
© कवि आशीष उपाध्याय "एकाकी"
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