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भगवदगीता - अध्याय 5, श्लोक 4 (Bhagwadgeeta Adhyay 5, Shlok 4 in Hindi)

भगवदगीता  - अध्याय 5, श्लोक 4
Bhagwadgeeta Adhyay 5, Shlok 4 in Hindi

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Bhagwadgeeta Adhyay 5, Shlok 4 in Hindi

साङ्‍ख्ययोगौ पृथग्बालाः प्रवदन्ति न पण्डिताः ।
एकमप्यास्थितः सम्यगुभयोर्विन्दते फलम्‌ ॥

श्री भगवान ने कहा ...

उपर्युक्त संन्यास और कर्मयोग को मूर्ख लोग पृथक्‌-पृथक् फल देने वाले कहते हैं न कि पण्डितजन, क्योंकि दोनों में से एक में भी सम्यक्‌ प्रकार से स्थित पुरुष दोनों के फलरूप परमात्मा को प्राप्त होता है 

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- अध्याय 5, श्लोक 4
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